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चन्द्रवंश में हस्ति नाम प्रतापी राजा की संतान विकुंठन के पुत्र महाराजा अजमीढ़ थे । उनकी माता का नाम रानी सुदेवा था। त्रेता युग में जब परशुराम जी ने क्षत्रियों से कुपित होकर उनका संहार कर रहे थे ऐसे आपातकाल में वन स्थित ॠषि-मुनियों ने उन्हें शरण दी।
तत्कालीन महाराज अजमीढ़जी क्षत्रियों की दयनीय दशा देखकर चिंतित रहने लगे। उन्हें स्वर्णकला का ज्ञान था, उन्होंने राज्य का कार्यभार युवराज संवरण को सौंपा व वानप्रस्थ आश्रम पहुंच आश्रम स्थापित किया व भयातुर क्षत्रियों को संरक्षण दिया।